अपने मुकद्दर का ये सिला भी क्या कम है,
एक ख़ुशी के पीछे छुपे हजारो गम है
चेहरे पे लिए फिरते है मुस्कराहट फिर भी
और लोग कहते है, कितने खुशनसीब हम है
इन्तियाज़
Tuesday, March 6, 2012
Monday, March 5, 2012
जिंदिगी का सफ़र
चल पड़े थे ज़िन्दगी के सफ़र पर यूं ही
ना जाने इस सफ़र मैं हम कहाँ बटक गए
एक पल रुक कर सोचना चाहा की जिंदिगी मैं क्या खोया और क्या पाया
पर चाह कर बी कदम रूक ना पाए और कारवां गुज़रता गया
वक्त के दहलीज़ पर अयेने मैं जब देखा
सफ़ेद चादर मे खुद को लिपटता पाया
ना जाने इस सफ़र मैं हम कहाँ बटक गए
एक पल रुक कर सोचना चाहा की जिंदिगी मैं क्या खोया और क्या पाया
पर चाह कर बी कदम रूक ना पाए और कारवां गुज़रता गया
वक्त के दहलीज़ पर अयेने मैं जब देखा
सफ़ेद चादर मे खुद को लिपटता पाया
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