Sunday, June 7, 2009

यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना -सुबुधरा चौहान

यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी इस पर बैठ कन्या बनता दीरे दीरे
ले देती तुम मुझे बासुरी दो पैसो वाली
किसी तरह नीची हो जाती ये कदम की डाली
तुम्हे नहीं कुछ कहता मैया चुपके - चुपके आता
वाही बैठ फिर बड़े मजे से मैया बासुरी बजता
अम्मा अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हे बुलाता
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नही उतर कर आता
माँ, तब माँ का ह्रदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आचल फैला कर अम्मा वाही पेड़ के निचे
इश्वर से कुछ विनंती करती बैठी आखे मीचे
तुम्हे ध्यान मई लगी देख माँ धीरे धीरे आता
और तुम्हारे फैले आचल के नीचे चुप जाता
तुम घबरा कर आँख खोलती, पैर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना रजा को गोदी मैं ही पाती
इस्सी तरह कुछ खेला करते हम तुम धीरे-धीरे
यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

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