Tuesday, March 6, 2012

अपने मुकद्दर का ये सिला भी क्या कम है,
एक ख़ुशी के पीछे छुपे हजारो गम है

चेहरे पे लिए फिरते है मुस्कराहट फिर भी

और लोग कहते है, कितने खुशनसीब हम है

इन्तियाज़

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